नमस्कार दोस्तों, आज हम लेकर आए हैं। एक ऐसे महापुरुष के अनमोल विचार स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार | Swami Vivekananda Quotes in Hindi जिन्होंने देश और समाज में अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से देश और दुनिया को प्रेरित किया और समाज को एक नई दिशा दी। अनेकों कठिनाइयों के बावजुद समाज और देश में फैले कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक माने जाते हैं। तो चलिए आपको इनके विचारों से रूबरू कराते हैं। जिन्हें पढ़कर आप सदा प्रेरणा प्राप्त करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं। THIS POST INCLUDES:–
|
- जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
- जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल और सबल मानोगे, तो सबल ही बन जाओगे।
- खुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
- अपना जीवन एक लक्ष्य पर निर्धारित करो। अपने पूरे शरीर को उस एक लक्ष्य से भर दो, और हर दूसरे विचार को अपनी ज़िन्दगी से निकाल दो। यही सफलता की कुंजी है।
- संगठन के बिना संसार में कोई भी महान एवं स्थाई कार्य नहीं किया जा सकता।
- उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
- आत्मविश्वास मानवता का एक शक्तिशाली अंग है।
- शिक्षक अर्थात गुरु के व्यक्तिगत जीवन के बिना कोई शिक्षा नहीं हो सकती।
- ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो। संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो।
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते। तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो। ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए। नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
- शिष्य के लिए आवश्यकता है– शुद्धता, ज्ञान की सच्ची लगन के साथ परिश्रम की।
- मस्तिष्क में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना। उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है।
- शिक्षा और मेहनत एक सुनहरी चाबी होती है। जो बंद भाग्य के दरवाजों को आसानी से खोल देती है।
- जिस अभ्यास से मनुष्य की इच्छाशक्ति, और प्रकाश संयमित होकर फलदाई बने। उसी का नाम है शिक्षा।
- हम वो हैं, जो हमें हमारी सोच ने बनाया है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं?
- हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे चरित्र का निर्माण हो। मानसिक शक्ति बढ़े। बुद्धि विकसित हो, और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे।
- जीवन का रास्ता बना बनाया नहीं मिलता। इसे स्वयं को बनाना पड़ता है। जिसने जैसा मार्ग बनाया, उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।
- हम स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करते हैं।
- जब मन को एकाग्र करके अपने ऊपर लगाया जाता है, तो हमारे भीतर के सभी हमारे नौकर बन जाते हैं।
- यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो।
- यदि गरीब लड़का शिक्षा के लिए नहीं आ सकता है, तो शिक्षा उसके पास जानी चाहिए।
- ज्ञान स्वयं में वर्तमान है। मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है ।
- जब तक जीना, तब तक सीखना। अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
- तब तक आपको कोई शिक्षित नहीं कर पाएगा। जब तक आप स्वयं प्रयास नहीं करते।
- एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो। उसके सपने देखो। उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।
- जब तक जीना, तब तक सीखना। अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।
- गुरु के प्रति विश्वास, नम्रता, विनय, और श्रद्धा के बिना हममें धर्म का भाव पनप नहीं सकता ।
- अधिकांश महापुरुषों को सुख की अपेक्षा दुख और संपत्ति की अपेक्षा दरिद्रता ने अधिक शिक्षा दी है।
- आपके मस्तिष्क की शक्ति सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केंद्रित होती हैं, चमक उठती हैं।
- संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है, और यह आप को ऊंचाई से गिरा भी सकती है। इसलिए संगति अच्छे लोगों से करें।
- एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो, और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
- शिक्षा का अर्थ है, उस पूर्णता को व्यक्त करना। जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान है।
- विद्यार्थी की आवश्यकता के अनुसार शिक्षा में परिवर्तन होना चाहिए।
- ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल एक ही मार्ग है और वह है–एकाग्रता।
- इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, ना कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
- मनुष्य किसी भी बाधा को दूर करने की क्षमता रखता है। यदि वह पर्याप्त रूप से लगातार अपने प्रयसों पर कार्यरत हो।
- यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता। तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
- पूर्णतः निःस्वार्थ रहो। स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढ़ो। तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे। अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविश्वास रखो। सच्चे और सहनशील बनो।
- अपने जीवन में जोखिम उठाएं। यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं। यदि आप हारते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं।
- आप लगातार कुछ करने के लिए काम कर रहे हैं, जिससे आपको सफलता मिलती है। इसलिए, यदि आप बार-बार असफल होते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यदि आप प्रयास करते रहेंगे, तो आप एक दिन या दूसरे दिन अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जाएंगे।
- हजारों ठोकरें खाने के बाद ही एक अच्छे चरित्र का निर्माण होता है।
- एकाग्रता की शक्ति ही ज्ञान के खजाने की एक मात्र कुंजी है।
- ज्ञान का दान मुक्त होकर, बिना कोई दाम लिए करना चाहिए।
- मनुष्य जैसा सोचता है। वैसा बन जाता है।
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है। फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
- महिलाओ को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए कि वे आत्मनिर्भर बन सके और अपनी समस्या खुद हल करने में समर्थ बन सकें। उनमे एक आदर्श चरित्र का विकास हो सके।
- लोग तुम्हारी स्तुति करें या निंदा। लक्ष्य, तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या ना हो। तुम्हारा देहांत आज हो, या युग में। तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट ना हो
- पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसी से भविष्य में कलह का बीजारोपण होगा।
- यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी महान् पाप है। उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा।
- जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है। तब वह वास्तविक, भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
- दृढ़ संकल्प कर लो कि तुम किसी दूसरे को नहीं कोसोगे। किसी दूसरे को दोष नहीं दोगे। पर तुम ‘मनुष्य’ बन जाओ। खड़े होओ और अपने आपको दोष दो स्वयं की ओर ही ध्यान दो। यही जीवन का पहला पाठ हैं। यह सच्ची बात है।
- सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना। जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।
- जीवन में अच्छे और बुरे दोनों शामिल हैं। जिस दिन आप इसे स्वीकार करते हैं। आप न केवल दुनिया का सामना करने की ताकत से भर जाएंगे, बल्कि मुसीबतों और कठिनाइयों के मद्देनजर भी अधिक सकारात्मक रहेंगे।
- हम वो हैं, जो हमें हमारी सोच ने बनाया है। इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं? शब्द गौण हैं। मगर विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
- वत्स, धीरज रखो। काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे। वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है– वत्स, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना। जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाए, निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो।
- अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है। उसका किसी से विरोध नहीं होता। वह किसी की शान्ति भंग नहीं करता। न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है।
- यह एक बड़ी सचाई है। शक्ति ही जीवन और कमजोरी ही मृत्यु है। शक्ति परम सुख है। अजर–अमर जीवन है। कमजोरी, कभी न हटने वाला बोझ और यन्त्रणा है। कमजोरी ही मृत्यु है।
- गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड़ दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है।
- हम जो बोते हैं। वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
- ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है।
- उठो। निडर बनो। मजबूत बनो। सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लो, और जान लो कि तुम अपने भाग्य के निर्माता खुद हो। आप जो भी ताकत और सहायता चाहते हैं। वह आपके भीतर है।
- एक नायक बनो, और सदैव खुद से कहो, मुझे कोई डर नहीं है। जैसा मैं सोच सकता हूँ। वैसा जीवन मैं जी भी सकता हूँ।
- मैं कहता हूँ, मुक्त करो, जहाँ तक हो सके लोगों के बन्धन खोल दो। जब तुम सुख की कामना समाज के लिए त्याग सकोगे। तब तुम भगवान बुद्ध बन जाओगे। तब तुम मुक्त हो जाओगे।
- जिस प्रकार केवल एक ही बीज पूरे जंगल को पुनर्जीवित करने के लिए पर्याप्त है। उसी प्रकार एक ही मनुष्य विश्व में बदलाव लाने के लिए पर्याप्त है। ये मनुष्य आप हो सकते हैं।
- किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं। तब तक उनके कार्य में सहायता करो और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती नज़र आए। तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड़ है। किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बड़ा हाथ है।
- बहुत सी कमियों के बाद भी हम खुद से प्रेम करते हैं, तो दूसरों में एक कमी से कैसे घृणा कर सकते हैं।
- जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे, तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
- जब तक आप अपने काम में व्यस्त हैं। तब तक काम आसान होता है, लेकिन आलसी होने पर कोई भी काम आसान नहीं लगता।
- धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लड़ो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुम में ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है। तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी
- क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है? बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
- जब मनुष्य इन्द्रियों के वश में होता है। वह संसार का है। जब उसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, तो संसार उसी का है।
- बाल्यकाल से ही उनके मस्तिष्क में निश्चित, दृढ़ और सहायक विचारों को प्रवेश करने दो। अपने आपको इन विचारों के प्रति उन्मुक्त रखो, न कि कमजोर तथा अकर्मण्य बनाने वाले विचारों के प्रति।
- जमीन अच्छी है, खाद अच्छा है, परंतु पानी अगर खारा है, तो फूल खिलते नहीं हैं। भाव अच्छे हैं, कर्म भी अच्छे हैं, मगर वाणी खराब है, तो संबंध कभी टिकते नहीं हैं।
- युवा वही होता है, जिसके हाथों में शक्ति, पैरों में गति, हृदय में ऊर्जा और आंखों में सपने होते हैं।
- यदि परिस्थितियों पर आपकी मजबूत पकड़ है, तो जहर उगलने वाला भी आपका कुछ नही बिगाड़ सकता।
- हर काम को तीन अवस्थाओं से गुज़रना होता है – उपहास, विरोध और स्वीकृति।
- संभव की सीमा जानने का एक ही तरीका है। असंभव से भी आगे निकल जाना।
- महाशक्ति का तुम में संचार होगा। कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ।
- बिना पाखण्डी और कायर बने, सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों? कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही।
- किसी चीज से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है, जो क्षण भर में परम आनंद लाती है।
- दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
- कर्म करना बहुत अच्छा है, पर वह विचारों से आता है। इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शो से भर लो। उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो। उन्हीं में से महान्कार्यो का जन्म होगा।
- मनुष्य जितना अपने अंदर से करुणा, दयालुता और प्रेम से भरा होगा। वह संसार को भी उसी तरह पायेगा।
- पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।
- अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए, उतना बेहतर है।
- यदि आप अपना जीवन पूरी तरह से जीना चाहते हैं तो आपको हर उस चीज का सामना करना होगा जो आपके रास्ते में आती है और इससे भागना नहीं है।
- ज़िंदगी में कभी नहीं डरना चाहिए। अगर तुम डरते नहीं, तो कुछ भी कर सकते हो।
- किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए। आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
- दिन-रात अपने मस्तिष्क को, उच्चकोटि के विचारो से भरो। जो फल प्राप्त होगा। वह निश्चित ही अनोखा होगा।।
- नीतिपरायण तथा साहसी बनो। अन्त:करण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो। प्राणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं। वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते। यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणी मात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चो, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।
- सबसे बड़ा धर्म है, अपने स्वभाव के प्रति सच्चा होना। स्वयं पर विश्वास करो।
- दिन में एक बार खुद से जरूर बात करो। वरना आप दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति से बात करने का मौका खो देंगे।
- यदि आप दुनिया को बदलना चाहते हैं, तो आपको पहले खुद पर विश्वास करने की आवश्यकता है।
- अपने लक्ष्यों को, अपनी क्षमताओं के स्तर तक कम न करें। इसके बजाय, अपनी क्षमताओं को अपने लक्ष्यों की ऊंचाई तक बढ़ाएं।
- भाग्य, बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुड़कर मत देखो। आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमिट साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है और तभी महान कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है।
- साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना -- यही एक मार्ग है। आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे -- माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे
- मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केन्द्रित होती हैं, चमक उठती हैं।
- जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पड़े। चाहे कितना ही त्याग करना पड़े। यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाए। हम दस ही क्यों न हों? दो क्यों न रहें? परवाह नहीं, परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुध्दचरित्र हों।
- शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म! संघर्ष , निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो। सारा धर्म इसी में है।
- पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं।
- पढ़ने के लिए जरूरी है, एकाग्रता। एकाग्रता के लिए जरूरी है, ध्यान। ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं।
- पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है। फिर उसका विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
- शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो।
- हम जितना ज्यादा बाहर जाए और दूसरों का भला करें। हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होगा और परमात्मा उसमें वास करेंगे।
- इच्छा का समुद्र हमेशा अतृप्त रहता है। उसकी माँगे ज्यों-ज्यों पूरी की जाती है, त्यों-त्यों और गर्जन करता है।
- असफलता की चिन्ता मत करो। वे बिल्कुल स्वाभाविक हैं। वे असफलताएँ जीवन के सौन्दर्य हैं। उनके बिना जीवन क्या होता? जीवन में यदि संघर्ष न रहे, तो जीवित रहना ही व्यर्थ हैं। इसी संघर्ष में हैं जीवन का काव्य। संघर्ष और त्रुटियों की परवाह मत करो। मैने किसी गाय को झूठ बोलते नहीं सुना, पर वह केवल गाय है, मनुष्य कभी नहीं। इसलिए इन असफलताओं पर ध्यान मत दो। ये छोटी फिसलनें हैं। आदर्श को सामनें रखकर हजार बार आगे बढ़ने का प्रयत्न करो। यदि तुम हजार बार भी असफल होते हो, तो एक बार फिर प्रयत्न करो।
- दुनिया एक महान व्यायामशाला है, जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- मन, शरीर का सूक्ष्म हिस्सा है। आपको अपने मन और शब्दों में बड़ी ताकत रखनी चाहिए।
- मस्तिष्क और मांसपेशियों को एक साथ विकसित होना चाहिए। एक बुद्धिमान मस्तिष्क के साथ लोहे की नसें और पूरी दुनिया आपके चरणों में है।
- आप अपने को जैसा सोचेंगे। आप वैसे ही बन जाएंगे। यदि आप स्वयं को कमजोर मानते हैं, तो आप कमजोर ही होंगे, और यदि आप स्वयं को मजबूत सोचते हैं, तो आप मजबूत हो जाएंगे।
- केवल उन्हीं का जीवन, जीवन है जो दूसरों के लिए जीते हैं। अन्य सब तो जीवित होने से अधिक मृत हैं।
- आकांक्षा, अज्ञानता और असमानता। यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
- बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है। वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है। वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोड़ा-बहुत धक्का भी खाना पड़े, तो उससे विचलित न होना। मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी।
- सिर्फ इसलिए कि आप अलग हैं। इसका मतलब यह नहीं है, कि आप गलत हैं। इसलिए, आपको अपने आप पर विश्वास करने की आवश्यकता है, और उस रास्ते पर चलते रहना चाहिए। जो आप सोचते हैं।
- ब्रह्मांड की सभी शक्तियां हमारे अंदर हैं।
- हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है। उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते हैं। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं, परन्तु मुझे दृढ़ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए।तब ये सब लुप्त हो जायेंगे।
- किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये। अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिए।
- आपको अंदर से बाहर की ओर विकसित होना है। कोई तुम्हें पढ़ा नहीं सकता। कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के अतिरिक्त कोई और गुरु नहीं है।
- तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता। कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।
- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं।
- रुपये के बिना एक आदमी गरीब नहीं है, लेकिन एक आदमी सपने और महत्वाकांक्षा के बिना वास्तव में गरीब है।
- शक्ति जीवन है, तो निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, तो संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, तो द्वेष मृत्यु है।
- जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो। ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए। नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।
- ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं, जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं, और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं?
- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है। जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- बस वही जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीते हैं।
- पवित्रता, धैर्य और दृढ़ता ये तीनों सफलता के लिए आवश्यक है, लेकिन इन सबसे ऊपर प्यार है।
- शिक्षा का अर्थ है, उस पूर्णता को व्यक्त करना। जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान है।
- जब भी आपके हृदय और मस्तिष्क के बीच संघर्ष हो। हमेशा अपने हृदय का अनुसरण करो।
- यदि मानव जाति के आज तक के इतिहास में महान् पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में सब से बड़ी प्रवर्तक शक्ति कोई है, तो वह आत्मविश्वास ही है। जन्म से ही यह विश्वास रहने के कारण कि वे महान होने के लिए ही पैदा हुए हैं, वे महान बने।
- जिसके साथ श्रेष्ठ विचार रहते हैं, वह कभी भी अकेला नहीं रह सकता।
- जब तक करोड़ों लोग भूखे और अज्ञानी रहेंगे। मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को विश्वासघाती मानूंगा। जो उनकी कीमत पर शिक्षित हुआ है, और उनकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता है।
- जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
- शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो। सत्य निष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लड़ो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है।
- चिंतन करो। चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
- बल ही जीवन है, और दुर्बलता, मृत्यु ।
- किसी बात से तुम उत्साहहीन न हो। जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है। कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो, तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।
- कुछ मत पूछो। बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है, वो दो। वो तुम तक वापस आएगा। पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
- यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो। तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो। वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे–स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं।
- जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो। उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं। इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो। वे जितना शीघ्र बह जाएँ। उतना अच्छा ही है।
- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है। शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
- यदि आपके पास संसाधन हैं, तो आपको उन संसाधनों का योगदान करने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। जो आपके आसपास दूसरों की अधिक भलाई के लिए हैं। यदि आप अपने आप को दयालुता के निस्वार्थ कार्यों में शामिल करते हैं, तो आप खुशी की भावना तक पहुंचेंगे जो कि आनंददायक होगा।
- अनुभव ही आपका सर्वोत्तम शिक्षक है। जब तक जीवन है सीखते रहो।
- लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा। लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो। तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग में। तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।
- भय और अपूर्ण वासना ही समस्त दुःखों का मूल है।
- यही दुनिया है, यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो। वे तुरन्त तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचाएंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे – स्नेहियों द्वारा ठगे जाते हैं।
- सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है। वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता। पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल हैं।
- पीड़ितों की सेवा के लिए आवश्यकता पड़ने पर हम अपने मठ की भूमि तक भी बेच देंगे। हजारों असहाय नर नारी हमारे नेत्रों के सामने कष्ट भोगते रहें, और हम मठ में रहें। यह असम्भव है। हम सन्यासी हैं। वृक्षों के नीचे निवास करेंगे, और भीक्षा मांगकर जीवित रह लेंगे।
- क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं हैं। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
- उठो। मेरे शेरों! इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। तुम एक अमर आत्मा हो। स्वच्छंद जीव हो। धन्य हो। सनातन हो। तुम तत्व नहीं हो। तत्व तुम्हारा सेवक है। तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
- मेरा आदर्श अवश्य ही थोड़े से शब्दों में कहा जा सकता है। मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना।
- अभ्यास अत्यावशयक है। तुम प्रतिदिन घण्टों बैठकर मेरा उपदेश सुनते रहो। पर यदि तुम उसका अभ्यास नहीं करते, तो एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते। यह सब तो अभ्यास पर ही निर्भर है। जब तक हम इन बातों का अनुभव नहीं करते। तब तक इन्हें नहीं समझ सकते। हमें इन्हें देखना और अनुभव करना पड़ेगा। सिद्धांतों और उनकी व्याख्याओं को केवल सुनने से कुछ न होगा।
- तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं है। आपकी अपनी आत्मा के अलावा कोई दूसरा आध्यात्मिक गुरु नहीं है।
- हम भगवान को खोजने कहां जा सकते हैं। अगर उनको अपने दिल और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते।
- वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य - जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो, व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है। इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।
- ईसा मसीह की तरह सोचो, और तुम ईसा बन जाओगे। बुद्ध की तरह सोचो, और तुम बुद्ध बन जाओगे। जिंदगी बस महसूस होने का नाम है।
- बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए, यही मेरा धर्म है। मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है। "बसन्तवल्लोकहितं चरन्त" यही मेरा धर्म है।
- अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा। ठहरो! धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है। तुमसे कहता हूँ! देखना- कोई बाहरी अनुष्ठान पध्दति आवश्यक न हो। बहुत्व में एकत्व सार्वजनिक भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीकता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़ना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ। तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीकता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दुसरों के धर्म का द्वेष न करना"। नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं। सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना। इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं। पूरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी। याद रखना उनकी कृपा से सब ठीक हो जायेगा।
- जब लोग तुम्हे गाली दें, तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
- आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एवं लोभ। इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जाएं और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा।
- जो शिक्षा साधारण व्यक्ति को जीवन-संग्राम में समर्थ नहीं बना सकती। जो मनुष्य में चरित्र-बल, परहित-भावना तथा सिंह के समान साहस नहीं ला सकती। वह भी कोई शिक्षा है? जिस शिक्षा के द्वारा जीवन में अपने पैरों पर खड़ा हुआ जाता है। वही है शिक्षा।
- शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे दिमाग़ में ऐसी बहुत सी बातें इस तरह ठूँस दी जाए। जो आपस में लड़ने लगें और तुम्हारा दिमाग़ उन्हें जीवन भर में हज़म न कर सके। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन-निर्माण कर सकें। मनुष्य बन सकें। चरित्र-गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें।वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है। यदि तुम पाँच ही भावों को हज़म कर तदनुसार जीवन और चरित्र गठित कर सके हो, तो तुम्हारी शिक्षा उस आदमी की अपेक्षा बहुत अधिक है। जिसने एक पूरी की पूरी लाइब्रेरी ही कण्ठस्थ कर ली है।
- शिक्षा क्या है ? क्या वह पुस्तक-विद्या है ? नहीं। क्या वह नाना प्रकार का ज्ञान है ? नहीं, यह भी नहीं। जिस संयम के द्वारा इच्छाशक्ति का प्रवाह, और विकास वश में लाया जाता है, और वह फलदायक होता है। वह शिक्षा कहलाती है।
- मेरे विचार से तो शिक्षा का सार मन की एकाग्रता प्राप्त करना है, तथ्यों का संकलन नहीं। यदि मुझे फिर से अपनी शिक्षा आरम्भ करनी हो और इसमें मेरा वश चले, तो मैं तथ्यों का अध्ययन कदापि न करूँ। मैं मन की एकाग्रता और अनासक्ति का सामर्थ्य बढ़ाता और उपकरण के पूर्णतया तैयार होने पर उससे इच्छानुसार तथ्यों का संकलन करता।
- जो सबका दास होता है। वही उनका सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है। वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है। जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता। उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है।
- जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है। यह अग्नि का दोष नहीं है।
- जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो। उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं। इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो। वे जितना शीघ्र बह जाएँ, उतना अच्छा है।
- प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है। वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है। वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो।
- अगर स्वाद की इंद्रिय को ढील दी, तो सभी इन्द्रियाँ बेलगाम दौड़ेगी।
- जितना हम दूसरों के साथ अच्छा करते हैं। उतना ही हमारा हृदय पवित्र हो जाता है, और भगवान उसमें बसता है।
- न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी। प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो। जिन्होंने अपने बन्धन तोड डाले हैं। जिन्होंने अनन्त का स्पर्श कर लिया है। जिनका चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है। जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे।
- यह मत भूलो कि बुरे विचार और बुरे कार्य तुम्हें पतन की और ले जाते हैं। इसी तरह अच्छे कर्म व अच्छे विचार लाखों देवदूतों की तरह अनंतकाल तक तुम्हारी रक्षा के लिए तत्पर हैं।
- तुम अपनी अंतःस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
- मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसी को श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाए।" सब विषओं में व्यवहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे। क्या तुने नहीं सुना? कबीरदास के दोहे में है- "हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार। साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता।
- यदि संसार में कहीं कोई पाप है तो वह है दुर्बलता। हमें हर प्रकार की कमजोरी या दुर्बलता को दूर करना चाहिए। दुर्बलता पाप है। दुर्बलता मृत्यु के समान है।
- उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है। जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
- ज्ञान मनुष्य में अन्तर्निहित ही है। कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता। सब अन्दर ही है।
- ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है। मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
- मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतय बाहर हो सकते हैं। निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
- जो कुछ अच्छा है। उसे दूसरों से सीखो, लेकिन इसे अंदर लाओ, और अपने तरीके से इसे अवशोषित करो। दूसरे मत बनो।
- मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा। मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना। इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।
- कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा अधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है, ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
- इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है। बडे आदमी वे हैं, जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं। यही सदा से होता आया है। एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं।
- जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है। उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है। उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
- बाह्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करना बहुत अच्छी और बहुत बड़ी बात है, पर अंततः प्रकृति को जीत लेना इससे भी बडी बात है। अपने भीतर के मनुष्य को वश में कर लो। मानव-मन के सूक्ष्म कार्यों के रहस्य को समझ लो और उसके आश्चर्यजनक गुप्त भेद को अच्छी तरह जान लो।
- जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं। जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं, और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है। अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।
- हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
- कोई भी जीवन असफल नहीं हो सकता। संसार में असफल कही जाने वाली कोई वस्तु है ही नहीं। सैकड़ों बार मनुष्य को चोट पहुँच सकती है। हजारों बार वह पछाड़ खा सकता है। पर अन्त में वह यही अनुभव करेगा कि वह स्वयं ही ईश्वर है।
- तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उद्धार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ कि उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाए। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो। इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं, नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो, सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते।
- आओ! मनुष्य बनो। अपनी संकीर्णता से बाहर आओ और अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाओ। देखो, दूसरे देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं? क्या तुम मनुष्य से प्रेम करते हो? क्या तुम अपने देश को प्यार करते हो? तो आओ, हम उच्चतर तथा श्रेष्ठतर वस्तुओं के लिए प्राणपण से प्रयत्न करे। पीछे मत देखो। यदि तुम अपने प्रियतमों तथा निकटतम सम्बन्धियों को भी रोते देखो, तो भी नहीं। पीछे मत देखो, आगे बढ़ो।
- मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो। उससे अतिशीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है, यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है। वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
- पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
- बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो। यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है। माँ मेरे साथ हैं। इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे! भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ।
- बालकों, दृढ बने रहो। मेरी सन्तानों में से कोई भी कायर न बने। तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है। सदा उसी का साथ करो। बिना विघ्न - बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है। मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाता। जिससे तुम्हारे हृदय उछल पड़ते, किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तो लोहे के सदृश दृढ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँ। जो कभी कम्पित न हो। दृढता के साथ लगे रहो।
- बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास। ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी। तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनों दिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो।
- किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ। जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है। कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।
- आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
- हर एक व्यक्ति हुकूमत जताना चाहता है। पर आज्ञा पालन करने के लिए कोई भी तैयार नहीं है और यह सब इसलिए है कि प्राचीन काल के उस अद्भुत ब्रह्मचर्य आश्रम का अब पालन नहीं किया जाता। पहले आदेश पालन करना सीखो। आदेश देना फिर स्वयं आ जायगा। पहले सर्वदा दास होना सीखो। तभी तुम प्रभु हो सकोगे।
- उठो, मेरे शेरो! इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। तुम एक अमर आत्मा हो। स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो। तत्व तुम्हारा सेवक है। तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
- और किसी बात की आवश्यकता नहीं। आवश्यकता है केवल प्रेम, अकपटता एवं धैर्य की। जीवन का अर्थ ही वृद्धि, अर्थात् विस्तार, यानी प्रेम है। इसलिए प्रेम ही जीवन है। यही जीवन का एक मात्र गतिनियामक है और स्वार्थपरता ही मृत्यु है। इहलोक एवं परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के विनाश के पीछे और कुछ नहीं रहता, तो भी उसे यह मानना ही पड़ेगा कि स्वार्थपरता ही यथार्थ मृत्यु है। परोपकार ही जीवन है। परोपकार न करना ही मृत्यु है। जितने नर-पशु तुम देखते हो, उनमें नब्बे प्रतिशत मृत हैं, वे प्रेत हैं। क्योंकि, ऐ बच्चों, जिसमें प्रेम नहीं है। वह तो मृतक है।
Frequently Asked Questions (FAQS):-
ये भी पढ़ें अन्य संबंधित सुविचार
- अल्बर्ट आइंस्टाइन के अनमोल विचार
- अब्राहम लिंकन के अनमोल विचार
- स्टीव जॉब्स के सुविचार
- मान्यवर कांशीराम के सुविचार
- रवीन्द्र नाथ टैगोर के सुविचार
- दलाई लामा के सुविचार
- गुरु नानक देव जी के सुविचार
- महावीर स्वामी के सुविचार
- लाल बहादुर शास्त्री के सुविचार
- संत गाडगे बाबा के सुविचार
- सावित्री बाई फुले के सुविचार
- इंदिरा गांधी के सुविचार
- महात्मा ज्योतिबा फुले जी के अनमोल विचार
- डॉ.भीमराव अंबेडकर जी के अनमोल विचार
- पं. जवाहर लाल नेहरू के अनमोल विचार
- स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार
- महावीर स्वामी के अनमोल विचार | Mahaveer Swami Quotes in Hindi
- छत्रपति शिवाजी महाराज के अनमोल विचार | Chhatrapati Shivaji Maharaj Quotes In Hindi
- शहीद भगत सिंह के अनमोल विचार | Shaheed Bhagat Singh Quotes In Hindi
- डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के अनमोल विचार | Dr.A.P.J.Abdul Kalam Quotes in Hindi
- महात्मा बुद्ध के 300+ अनमोल विचार | Mahatma Buddha Quotes in Hindi
- देशभक्ति सुविचार भाग–1 Patriotic Quotes in Hindi
- देशभक्ति सुविचार भाग–2 Patriotic Quotes in Hindi
- 26 नवंबर संविधान दिवस शायरी इन हिंदी | 26 November Constitution Day Shayari in Hindi
दोस्तों, स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार | Swami Vivekananda Quotes in Hindi पढ़कर आपको कैसा लगा ? हमें कमेंट में जरूर बताइए। अगर आपको अच्छी लगी हो, तो दूसरों को अपने परिवार जनों को जरुर शेयर कीजिए, ताकि वह भी इन्हें पढ़कर इनसे प्रेरणा प्राप्त कर सकें। इसी तरह की और सुविचार इन हिंदी Suvichar in Hindi पढ़ने के लिए आप हमारे ब्लॉग www.jannayak23.blogspot.com में नियमित रूप से विजिट करिए, ताकि इस तरह की और सुविचार इन हिंदी Suvichar in Hindi आपको पढ़ने को मिलती रहे। आप इस ब्लॉग में जुड़े आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप अपनी जरूरत के हिसाब से ब्लॉग मेनू में जाकर कैटिगरीज में और भी अन्य चीजें देख सकते हैं, जो आपके लिए काफी मददगार हो सकता है। तो चलिए मिलते हैं, अगली किसी और महापुरुष के सुविचार इन हिंदी Suvichar in Hindi में, तब तक अपना ध्यान रखिए। खुश रहिए। पढ़ते रहिए। बढ़ते रहिए। धन्यवाद। ब्लॉग में प्रकाशित सामग्री पूरी तरह से जांची परखी गई है। इसमें किसी भी तरह के बदलाव में ब्लॉग या एडमिन जिम्मेदार नहीं होगा।
You May Also Like
Loading...
Tags:
सुविचार