महावीर स्वामी के अनमोल विचार | Mahavir Swami Quotes in Hindi

नमस्कार दोस्तों, आज हम लेकर आए हैं। एक ऐसे महापुरुष के अनमोल विचार Mahavir Swami Quotes in Hindi |महावीर स्वामी के अनमोल विचार जिन्होंने देश और समाज में अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से देश और दुनिया को प्रेरित किया और समाज को एक नई दिशा दी। अनेकों कठिनाइयों के बावजुद समाज और देश में फैले कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक माने जाते हैं। तो चलिए आपको इनके विचारों से रूबरू कराते हैं। जिन्हें पढ़कर आप सदा प्रेरणा प्राप्त करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

THIS POST INCLUDES:–

  • महावीर स्वामी :- संक्षिप्त परिचय
  • Mahavir Swami Quotes in Hindi | महावीर स्वामी के अनमोल विचार
  • Frequently Asked Questions (FAQS)
  • ये भी पढ़ें – अन्य संबंधित सुविचार

महावीर स्वामी :- संक्षिप्त परिचय

महावीर स्वामी, जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर है। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले, ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को इनका जन्म हुआ। इनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था। ये ही बाद में स्वामी महावीर बने। महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है। महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए। उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार- सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा। उन्होंने अपने कुछ विशेष उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही मार्ग दिखाने की ‍कोशिश की।

स्रोत:-मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया

Mahavir Swami Quotes in Hindi |महावीर स्वामी के अनमोल विचार

  • जियो और जीने दो।
  • अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। (अहिंसा परमो धर्मः )
  • दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं। इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें। जो हमें स्वयं को पसन्द हो।
  • आप स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मनों से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेंगे। उन्हें आनन्द की प्राप्ति होगी।
  • आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है। असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं। वो शत्रु हैं - क्रोध, घमण्ड, लालच, आसक्ति और घृणा।
  • आपात स्थिति में मन को डगमगाना नहीं चाहिए।
  • एक लाख शत्रुओं पर जीत हासिल करने के बजाय, स्वयं पर विजय प्राप्त करना बेहतर है।
  • एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है। वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है। लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हस्र होने वाला है। वह आदमी मूर्ख है।
  • एक सच्चा इंसान उतना ही विश्वसनीय है, जितनी माँ। उतना ही आदरणीय है, जितना गुरु और उतना ही परमप्रिय है, जितना ज्ञान रखने वाला व्यक्ति।
  • कठिन परिस्थितयो में घबराना नहीं चाहिए, बल्कि धैर्य रखना चाहिए।
  • किसी के सिर पर गुच्छेदार या उलझे हुए बाल हों या उसका सिर मुंडा हुआ हो, वह नग्न रहता हो या फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो। लेकिन अगर वो झूठ बोलता है, तो ये सब व्यर्थ और निष्फल है।
  • किसी को चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।
  • किसी को तब तक नहीं बोलना चाहिए। जब तक उसे ऐसे करने के लिए कहा न जाए। उसे दूसरों की बातचीत में व्यवधान नहीं डालना चाहिए।
  • किसी जीवित प्राणी को मारे नहीं। उन पर शासन करने का प्रयास नहीं करें।
  • कीमती वस्तुओं की बात दूर है, एक तिनके के लिए भी लालच करना पाप को जन्म देता है। एक लालच रहित व्यक्ति, अगर वो मुकुट भी पहने हुए है, तो पाप नहीं कर सकता।
  • केवल वह विज्ञान महान और सभी विज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ है, जिसका अध्ययन मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्त करता है।
  • केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता को अनुभव कर सकता है।
  • केवल वही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है, जिसकी आत्मा बंधन और विरक्ति की यातना से संतप्त ना हो।
  • केवल सत्य ही इस दुनिया का सार है।
  • क्या तुम लोहे की धधकती छड़ सिर्फ इसलिए अपने हाथ में पकड़ सकते हो? क्योंकि कोई तुम्हे ऐसा करना चाहता है? तब, क्या तुम्हारे लिए ये सही होगा कि तुम सिर्फ अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दूसरों से ऐसा करने को कहो। यदि तुम अपने शरीर या दिमाग पर दूसरों के शब्दों या कृत्यों द्वारा चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते हो, तो तुम्हे दूसरों के साथ अपनों शब्दों या कृत्यों द्वारा ऐसा करने का क्या अधिकार है?
  • क्रोध, हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता है, और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं।
  • खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।
  • जन्म का मृत्यु द्वारा, नौजवानी का बुढापे द्वारा और भाग्य का दुर्भाग्य द्वारा स्वागत किया जाता है। इस प्रकार इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है।
  • जो जागरूक नहीं है, उसे सभी दिशाओं से डर है। जो सतर्क है, उसे कहीं से कोई भी डर नहीं है।
  • जितना अधिक आप पाते हैं, उतना अधिक आप चाहते हैं। लाभ के साथ-साथ लालच बढ़ता जाता है। जो २ ग्राम सोने से पूर्ण किया जा सकता है। वो दस लाख से नहीं किया जा सकता।
  • जिस तरह आपको दुख पसंद नहीं है, उसी तरह दूसरे भी इसे पसंद नहीं करते हैं। यह जानते हुए भी, आपको दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए। जो आपको खुद के लिए पसंद हो।
  • जिस प्रकार आग इंधन से नहीं बुझाई जाती, उसी प्रकार कोई जीवित प्राणी तीनो दुनिया की सारी दौलत से संतुष्ट नहीं होता।
  • जिस प्रकार धागे से बंधी (ससुत्र) सुई खो जाने से सुरक्षित है, उसी प्रकार स्व-अध्ययन (ससुत्र) में लगा व्यक्ति खो नहीं सकता है।
  • जिसने भय को पार कर लिया है, वह समभाव का अनुभव कर सकता है।
  • जीओ और जीने दो, किसी को दुःख मत दो क्योंकि सभी का जीवन उनके लिए प्रिय होता है।
  • जीतने पर गर्व ना करें। ना ही हारने पर दुःख।
  • जैसे एक कछुआ अपने पैर शरीर के अन्दर वापस ले लेता है, उसी तरह एक वीर अपना मन सभी पापों से हटा स्वयं में लगा लेता है।
  • जैसे कि हर कोई जलती हुई आग से दूर रहता है, इसी प्रकार बुराइयां एक प्रबुद्ध व्यक्ति से दूर रहती हैं।
  • जो भय का विचार करता है। वह खुद को अकेला (और असहाय) पाता है।
  • जो रातें चली गयी हैं। वे फिर कभी नहीं आएँगी। वे अधर्मी लोगों द्वारा बर्बाद कर दी गयी हैं।
  • जो लोग जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य से अनजान हैं। वे व्रत रखने और धार्मिक आचरण के नियम मानने और ब्रह्मचर्य और ताप का पालन करने के बावजूद निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे।
  • जो सुख और दुःख के बीच में समनिहित रहता है। वह एक श्रमण है, शुद्ध चेतना की अवस्था में रहने वाला।
  • पर्यावरण का महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि एक आप ही इसके अकेले तत्व नहीं हो।
  • प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता।
  • प्रत्येक जीव स्वतंत्र है। कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।
  • प्रबुद्ध व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि उसकी आत्मा असीम ऊर्जा से संपन्न है।
  • बाहरी त्याग अर्थहीन है। यदि आत्मा आंतरिक बंधनों से जकड़ी रहती है।
  • भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।
  • भिक्षुक (संन्यासी) को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए। जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानी व्यक्ति की तरह होगा। इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए।
  • मुझे अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दु:ख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें (समता को प्राप्त करने के लिए)।
  • मौन और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।
  • वह इंसान जो अपने आप पर काबू पा ले, वह किसी भी चीज पर काबू पा सकता है।
  • वह जिसकी सहायता से हम सत्य को जान सकते हैं, चंचल मन को नियंत्रित कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं।
  • वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है।
  • वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।
  • सत्य के प्रकाश से प्रबुद्ध हो, बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु से ऊपर उठ जाता है।
  • सभी अज्ञानी व्यक्ति पीड़ाएं पैदा करते हैं। भ्रमित होने के बाद, वे इस अनन्त दुनिया में दुःखों का उत्पादन और पुनरुत्थान करते हैं।
  • सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।
  • सभी जीवों के प्रति दया भाव रखें। नफ़रत से विनाश होता है।
  • सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।
  • साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।
  • साहसी हो या कायर दोनों को मरना ही है। जब मृत्यु दोनों के लिए अपरिहार्य है, तो मुस्कराते हुए और धैर्य के साथ मौत का स्वागत क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
  • हर आत्मा अपने आप में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद कही बाहर से नहीं आता है।
  • हर आत्मा स्वतंत्र है। कोई भी दूसरे पर निर्भर नहीं करता है।
  • हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो क्योकि, घृणा से विनाश होता है।
  • हे स्व! सत्य का अभ्यास करो, और और कुछ भी नहीं बस सत्य का।
  • अज्ञानी कर्म का प्रभाव ख़त्म करने के लिए लाखों जन्म लेता है, जबकि आध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे समाप्त कर देता है।
  • किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है, और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है।
  • आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।
  • एक कामुक व्यक्ति, अपने वांछित वस्तुओं को प्राप्त करने में नाकाम रहने पर पागल हो जाता है और किसी भी तरह से आत्महत्या करने के लिए तैयार भी हो जाता है।
  • एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस का एकीकरण नहीं है, बल्कि यह आत्मा का निवास है जो संभावित रूप से परिपूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन), संपूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान), परिपूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य) और परिपूर्ण आनंद (अनंत-सुख) है।
  • अगर आपको सुखी रहना है, तो दो चीजे हमेशा याद रखो - भगवान और अपनी मृत्यु।

Frequently Asked Questions (FAQs) :-

  • महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ था?
  • इनका जन्म 599 ईसा पूर्व, चैत्र शुक्ल तेरस, क्षत्रिय कुण्डलपुर, वैशाली गणराज्य, वज्जी (जिला वैशाली, बिहार, भारत में हुआ था।
  • महावीर स्वामी का जन्म कहां हुआ था?
  • इनका जन्म इक्ष्वाकु वंशी क्षत्रिय परिवार में माता त्रिशला, पिता राजा सिद्धार्थ के यहां तृतीय संतान के रूप में हुआ था।
  • महावीर स्वामी ने कब सन्यास ग्रहण किया था?
  • महावीर स्वामी ने  गृहत्याग कर 30 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया था।
  • महावीर स्वामी को ज्ञान प्राप्त कब हुआ था?
  • महावीर स्वामी को ज्ञान प्राप्ति 12 वर्ष बाद हुई। केवलज्ञान प्राप्त कर समवशरण (ज्ञान प्रसारित प्रारंभ) किए।
  • महावीर स्वामी जैन धर्म के कौन से तीर्थंकर थे?
  • महावीर स्वामी जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर थे। ऋषभदेव पहले तीर्थंकर थे।
  • महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त कब हुआ?
  • इनको निर्वाण (मोक्ष)(निधन) 72 वर्ष की आयु में  कार्तिक कृष्ण अमावस्या को पावापुरी (राजगीर), जिला नालंदाबिहार, भारत में हुआ था। इनकेनिर्वाण दिवस को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

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