Dr Ambedkar Quotes In Hindi | डॉ.भीमराव अंबेडकर के सुविचार

नमस्कार दोस्तों, आज हम लेकर आए हैं। एक ऐसे महापुरुष के अनमोल विचार डॉ.भीमराव अंबेडकर सुविचार | Dr. Bhimrao Ambedkar Quotes In Hindi जिन्होंने देश और समाज में अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से देश और दुनिया को प्रेरित किया और समाज को एक नई दिशा दी। इन्होंने संविधान के द्वारा सभी जन मानस को एक सूत्र में पिरोकर एकता के सूत्र में बांध दिया। अनेकों कठिनाइयों के बावजुद समाज और देश में फैले कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक माने जाते हैं। तो चलिए आपको इनके विचारों से रूबरू कराते हैं। जिन्हें पढ़कर आप सदा प्रेरणा प्राप्त करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

THIS POST INCLUDES:–

  • डॉ.भीमराव अंबेडकर - संक्षिप्त परिचय
  • डॉ.भीमराव अंबेडकर के सुविचार
  • Frequently Asked Questions (FAQS)
  • अन्य संबंधित सुविचार

डॉ.भीमराव अंबेडकर - संक्षिप्त परिचय

  • जन्म - 14 अप्रैल 1891, महू, मध्य प्रांत, ब्रिटिश भारत, (अब डॉ. आम्बेडकर नगर, मध्य प्रदेश, भारत)
  • संतान - यशवंत भीमराव अम्बेडकर
  • पत्नी - रमाबाई आम्बेडकर (विवाह 1906–1935), डॉ.सविता आंबेडकर (विवाह 1948–2003)
  • निवास - राजगृह, मुंबई। 26 अलिपूर रोड, डॉ॰ आम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक, दिल्ली
  • शिक्षा - मुंबई विश्वविद्यालय (बी॰ए॰), कोलंबिया विश्वविद्यालय (एम.ए., पीएच.डी., एल.एल.डी.), कोलंबिया विश्वविद्यालय (1927), लंदन विश्वविद्यालय (1923), लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स (एम.एस.सी., डीएस.सी.), ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ)
  • पेशा/व्यवसाय- वकील, प्रोफेसर व राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद दार्शनिक, लेखक, पत्रकार, समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी, शिक्षाविद्, धर्मशास्त्री, इतिहासविद, प्रोफेसर, सम्पादक
  • भारतीय संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष - 29 अगस्त 1947- 24 जनवरी 1950
  • पुरस्कार/सम्मान - बोधिसत्व (1956), भारत रत्न (1990), पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004), द ग्रेटेस्ट इंडियन (2012)
  • राजनीतिक दल - शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन, स्वतंत्र लेबर पार्टी भारतीय रिपब्लिकन पार्टी
  • सामाजिक संघठन - बहिष्कृत हितकारिणी सभा, समता सैनिक दल
  • शैक्षिक संघठन - डिप्रेस्ड क्लासेस एज्युकेशन सोसायटी, द बाँबे शेड्युल्ड कास्ट्स इम्प्रुव्हमेंट ट्रस्ट, पिपल्स एज्युकेशन सोसायटी
  • धार्मिक संघठन - भारतीय बौद्ध महासभा
  • धर्म - बौद्ध धम्म
  • महापरिनिर्वाण - 6 दिसंबर 1956 (उम्र 65), डॉ. आम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक, नई दिल्ली, भारत
  • समाधि स्थल - चैत्य भूमि, मुंबई, महाराष्ट्र

डॉ.भीमराव अंबेडकर के सुविचार | Dr Ambedkar Quotes In Hindi

  • बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
  • जीवन लंबा होने की बजाए महान होना चाहिए।
  • भाग्य में विश्वास रखने के बजाए। अपनी शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए।
  • हम सबसे पहले, और अंत में भी भारतीय हैं।
  • महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है।
  • जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते। कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है। वो आपके किसी काम की नहीं।
  • जिसे अपने दुखों से मुक्ति चाहिए। उसे लड़ना होगा, और जिससे लड़ना है उसे, उससे पहले अच्छे से पढ़ना होगा। क्योंकि ज्ञान के बिना लड़ने गए, तो आपकी हार निश्चित है।
  • एक इतिहास लिखने वाला इतिहासकार सटीक, निष्पक्ष और ईमानदार होना चाहिए। 
  • यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
  • उदासीनता एक ऐसे किस्म की बीमारी है। जो किसी को प्रभावित कर सकती है।
  • शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, और किसी को भी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  • शिक्षा ही एकता, बंधुता और देशप्रेम के विवेक को जन्म देती है। सभ्यता और संस्कृति का भवन शिक्षा के स्तम्भ पर ही बनता है। शिक्षा ही मनुष्य को मनुष्यत्व प्रदान करती है  तथा शिक्षा के अभाव में मानव पशु तुल्य होता है।
  • ज्ञान मानव जीवन का आधार है। छात्रों की बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना और बनाए रखना। साथ ही उनकी बुद्धि को उत्तेजित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
  • समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
  • जो क़ौम अपना इतिहास नहीं जानती। वह क़ौम कभी भी इतिहास नहीं बना सकती।
  • समरसता निर्माण करने वाली व लोकतान्त्रिक मूल्यों की भावना का विकास करने वाली शिक्षा व पाठ्यक्रम को ही पढ़ाया जाना चाहिए।
  • किसी भी समाज का उत्थान उस समाज में शिक्षा की प्रगति पर निर्भर करता है।
  • मैं किसी समुदाय की प्रगति उस समाज में महिलाओं की प्रगति से मापता हूँ।
  • शिक्षा वह है, जो व्यक्ति को उसके अस्तित्व, क्षमता और सामर्थ्य से अवगत कराती है।
  • तकनीकी और वैज्ञानिक प्रशिक्षण के बिना देश की कोई भी विकास योजना पूरी नहीं होगी।
  • शिक्षा वो शेरनी का दूध है। जो जितना पिएगा, उतना दहाड़ेगा।
  • छात्र स्तर पर ही अपनी योग्यता बढ़ाएँ।
  • शिक्षित बनो। संगठित रहो। संघर्ष करो। आत्मविश्वासी बनो। कभी भी हार मत मानो। यही हमारे जीवन के पांच सिद्धांत हैं।
  • यदि कोई व्यक्ति जीवन भर सीखना चाहे, तो भी वह ज्ञान सागर के पानी में घुटने जितना ही जा सकता है।
  • शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। समय आने पर भूखे रहो, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाओ।
  • शिक्षक ज्ञान पिपासु, अनुसंधान करने वाला व आत्म विश्वासी होना चाहिए।
  • ज्ञान और विद्या केवल पुरुषों के लिए नहीं हैं। वे महिलाओं के लिए भी आवश्यक हैं।
  • शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है। जितनी पुरुषों के लिए।
  • छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते। अधिकार वसूल करना होता है।
  • शिक्षा के बिना कोई भी समाज आगे नही बढ सकता है। अंधविश्वासों से मुक्ति, अज्ञानता, अन्याय और शोषण के विरू़द्व ललकारने की ताकत भी शिक्षा से ही संभव है।
  • अगर आपके पास दो रुपये हैं, तो एक रुपये की रोटी और एक रुपये की किताब ले लीजिए, क्योंकि रोटी आपको जीने में मदद करेगी, और किताब आपको जीवन जीना सिखाएगी।
  • लड़कों और लड़कियों को शिक्षित करें। उन्हें पारंपरिक व्यावसायिक कामों में शामिल न करें।
  • यदि समाज की महिलाएँ शिक्षित होंगी, तो वे अपनी संतानों को भी शिक्षित व संस्कारवान बना सकती है।
  • यह जानते हुए की शिक्षा ही जीवन में प्रगति का मार्ग है। छात्रों को कठिन अध्ययन करना चाहिए और समाज के वफादार नेता बनना चाहिए।
  • आप ही अपने जीवन के शिल्पकार हो।
  • छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते। अधिकार वसूल करना होता है।
  • स्वाभिमान शून्य समाज की अपने जीवन को पुनः चलायमान रखना है,  तो उसको शिक्षित होना ही होगा।
  • आप शिक्षित हो गए। इसका मतलब यह नहीं है कि सब कुछ हुआ। शिक्षा के महत्व में कोई संदेह नहीं है, लेकिन शिक्षा के साथ-साथ शील (नैतिकता) भी सुधारी जानी चाहिए। नैतिकता के बिना शिक्षा का मूल्य शून्य है।
  • शिक्षा हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, और किसी को भी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • भाग्य से ज्यादा अपने आप पर विश्वास करो। भाग्य में विश्वास रखने के बजाय, शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए।
  • कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है, और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े, तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
  • इस दुनिया में स्वाभिमान से जीना सीखो। इस दुनिया में कुछ करके ही दिखाना है। यह महत्वाकांक्षा हमेशा आपके अंदर होनी चाहिए। याद रखना! जो लड़ते हैं, वही आगे आते हैं।
  • सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है, वहां अपनी पहचान नहीं खोता। मानव का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।
  • हमें शिक्षा के प्रसार को उतना ही महत्व देना चाहिए। जितना कि हम राजनीतिक आंदोलन को महत्व देते हैं।
  • सामाजिक प्रताड़ना राज्यों द्वारा दिये जाने वाले दण्ड से भी कहीं अधिक दुःखदायी हैं।
  • शिक्षा ही जीवन में वास्तविक प्रगति की कुंजी है।
  • ज्ञान हर व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार है।
  • जो झुक सकता है। वो झुका भी सकता है।
  • भाग्य में नहीं, अपनी शक्ति में विश्वास रखो
  • प्रत्येक छात्र को अपने चरित्र का निर्माण प्रज्ञा, शील, करुणा, विद्या और मैत्री इन पंच तत्वों के आधार पर करना चाहिए।
  • प्राथमिक शिक्षा का सार्वत्रिक प्रचार सर्वांगीण राष्ट्रीय प्रगति के भवन का आधार है। इसलिए प्राथमिक शिक्षा के मामले में अनिवार्य कानून बनाया जाना चाहिए।
  • जो आदमी को योग्‍य न बनाए। समानता और नैतिकता न सिखाए। वह सच्‍ची शिक्षा नहीं है। सच्‍ची शिक्षा तो समाज में मानवता की रक्षा करती है। आजीविका का सहारा बनती है। आदमी को ज्ञान और समानता का पाठ पढाती है। सच्‍ची शिक्षा समाज में जीवन का सृजन करती है।
  • शिक्षा के बिना हम महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा नहीं कर पाएंगे।
  • शिक्षा समाज के विकास का सबसे बड़ा हथियार है। बिना शिक्षा के मनुष्य पशु समान होता है।
  • एक सुरक्षित सेना एक सुरक्षित सीमा से बेहतर है।
  • न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है।
  • जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते। कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है। वो आपके किसी काम की नहीं।
  • समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
  • अपने स्वयं के ज्ञान को धीरे-धीरे बढ़ाते रहना। इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है?
  • एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है, कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है।
  • इस पूरी दुनिया में गरीब वही है, जो शिक्षित नहीं है। इसलिए आधी रोटी खा लेना, लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाना।
  • समाज में अनपढ़ लोग हैं। ये हमारे समाज की समस्या नहीं है, लेकिन जब समाज के पढ़े-लिखे लोग भी गलत बातों का समर्थन करने लगते हैं, और गलत को सही दिखाने के लिए अपने बुद्धि का उपयोग करते हैं। यही हमारे समाज की समस्या है।
  • मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है। जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।
  • मैं राजनीति में सुख भोगने नहीं, बल्कि अपने सभी दबे-कुचले भाईयों को उनके अधिकार दिलाने आया हूं।
  • जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है। वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।
  • समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर समाज इस दायित्व का निर्वहन नहीं कर सके, तो उसे बदल देना चाहिए।
  • धर्म, मनुष्य के लिए बना है। न कि मनुष्य धर्म के लिए।
  • मुझे लोगों के साथ रहने से ज्यादा किताबों के साथ रहना पसंद है। 
  • छात्रों को बस्ती बस्ती में जाकर लोगों की अज्ञानता और मूर्खतापूर्ण विश्वासों दूर करना चाहिए, तभी उनकी शिक्षा से लोगों को कुछ लाभ होगा। अपने ज्ञान का उपयोग केवल परीक्षा उत्तीर्ण होने के लिए करना पर्याप्त नहीं होगा। हमें अपने ज्ञान का उपयोग अपने भाइयों और बहनों के सुधार एवं प्रगति करने के लिए करना चाहिए। तभी भारत समृद्ध होगा।
  • निडर बनो और दुनिया का राज्य पाओ। यही मैं युवा छात्रों से कहना चाहता हूं। 
  • बच्‍चों को स्‍कूल पहुंचा देना ही काफी नहीं है। उन्‍हें बुनियादी शिक्षा प्राप्‍त करने तक स्‍कूल से जोडे रखना भी जरूरी है। ठीक ऐसे ही जैसे कि पेड़ लगाना ही पर्याप्‍त नहीं है, उन पेड़ों को खाद-पानी देकर सींचना भी जरूरी है। वर्ना उन्‍हें मरने में देर नहीं लगेगी।
  • हर व्यक्ति जो "मिल" के सिद्धांत कि एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता' को दोहराता है। उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता।
  • शिक्षा ही व्यक्ति को अंधविश्वास, झूठ और आडम्बर से दूर करती है। शिक्षा का उद्देश्य लोगों में नैतिकता व जन कल्याण की भावना विकसित करने का होना चाहिए। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए, जो विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण में भी योगदान दे सके।
  • मनुष्य इस दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं कर सकता जब तक कि शील और शिक्षा पास न हों।
  • राष्‍ट्रवाद तभी औचित्‍य ग्रहण कर सकता है, जब लोगों के बीच जाति, नस्‍ल या रंग का अन्‍तर भुलाकर उनमें सामाजिक भ्रातृत्‍व को सर्वोच्‍च स्‍थान दिया जाये।
  • उदासीनता सबसे खतरनाक बीमारी है। जो लोगों को प्रभावित कर सकती है।
  • हो सकता है कि समानता एक कल्पना हो, पर विकास के लिए यह ज़रूरी है।
  • हम शुरू से अंत तक भारतीय हैं।
  • पति-पत्नी के बीच का संबंध घनिष्ठ मित्रों के संबंध के समान होना चाहिए।
  • ग्रंथ ही गुरू है। 
  • स्वच्छ रहना सीखें, और सभी दुर्गुणों से मुक्त रहें। अपने बच्चों को शिक्षित करें। उनके मन में धीरे-धीरे महत्वाकांक्षा जगाएं। उन्हें विश्वास दिलाएं कि वे महान व्यक्ति बनने जा रहे हैं। उनके अंदर की हीनता को नष्ट करें। उनकी शादी करने में जल्दबाजी न करें।
  • असली शिक्षा हमें भयभीत करने की जगह तार्किक बनाएगी।
  • ज्ञान सभी मनुष्यों के लिए भोजन के समान है।
  • जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है। वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है।
  • जो धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है। वही सच्चा धर्म है।
  • शिक्षा वह है, जो व्‍यक्ति को निडर बनाए। एकता का पाठ पढाए। लोगों को अधिकारों के प्रति सचेत करे। संघर्ष की सीख दे, और आजादी के लिए लड़ना सिखाए।
  • जिस तरह मनुष्य नश्वर है, ठीक उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है, उसी तरह एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरुरत होती है। वरना दोनों मुरझा कर मर जाते हैं।
  • यदि हमें अपने पैरों पर खड़े होना है। अपने अधिकार के लिए लड़ना है, तो अपनी ताकत और बल को पहचानो, क्योंकि शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष से ही मिलती है।
  • शिक्षा का लक्ष्य लोगों को नैतिक और सामाजिक बनाना है।
  • व्यक्ति को न सिर्फ अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए, अपितु उसके लिए प्रयत्नशील भी होना चाहिए, लेकिन हमें इस सत्य को नहीं भूलना चाहिए कि इन अधिकारों के साथ-साथ हमारा देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य भी है।
  • आप स्वाद को बदल सकते हैं, परन्तु जहर को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
  • जो कौम अपना इतिहास नही जानती है। वह कौम कभी अपना इतिहास नही बना सकती है।
  • जब विद्यार्थी सीख रहे हों, तो उन्हें सीखने का एक ही लक्ष्य अपने सामने रखना चाहिए।
  • देश के विकास से पहले हमें अपनी बुद्धि के विकास की आवश्यकता है।
  • मन का संवर्धन मानव अस्तित्व का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए।
  • महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है।
  • संविधान केवल वकीलों का दस्‍तावेज नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक माध्‍यम है।
  • मेरी प्रशंसा और जय-जय कार करने से अच्छा है, मेरे दिखाये गए मार्ग पर चलो।
  • सामाजिक न्याय के मूल घटक स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व हैं। सामाजिक न्याय का अर्थ है, व्यक्तिगत जीवन की मूलभूत धारणाओं में पूर्ण परिवर्तन और मनुष्यों और वस्तुओं के प्रति, हमारे दृष्टिकोण और दृष्टिकोण में पूर्ण परिवर्तन।
  • ज्ञानी लोग किताबों की पूजा करते हैं, जबकि अज्ञानी लोग पत्थरों की पूजा करते हैं।
  • पढ़ोगे, तो बचोगे।
  • मेरा जीवन तीन गुरु हैं। मेरे पहले और श्रेष्ठ गुरु बुद्ध हैं। मेरे दूसरे गुरु कबीर हैं और तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले हैं। मेरे तीन उपास्य दैवत भी हैं। मेरा पहला दैवत ‘विद्या’, दूसरा दैवत ‘स्वाभिमान’ और तीसरा दैवत ‘शील’ (नैतिकता) है।
  • लोगों का जीवन-स्‍तर उठाने लिए शिक्षा सबसे महत्‍वपूर्ण अस्‍त्र है।
  • इतिहास गवाह है, जब नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष हुआ है। वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।
  • मैं अपना सारा जीवन एक छात्र के रूप में जीना चाहता हूँ।
  • बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
  • भारत को एक सामाजिक लोकतंत्र बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि केवल एक राजनीतिक लोकतंत्र। सामाजिक लोकतंत्र जीवन का एक तरीका है। जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को जीवन के सिद्धांतों के रूप में मान्यता देता है।
  • शिक्षा एक पवित्र संस्था है। स्कूल में मन सुसंस्कृत होते हैं। सभ्य नागरिक बनाने के लिए स्कूल एक पवित्र क्षेत्र हैं।
  • निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो।
  • अच्छा दिखने के लिए नहीं, बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ।
  • एक इतिहासकार सटीक, ईमानदार और निष्‍पक्ष होना चाहिए।
  • यदि आप मन से स्वतंत्र हैं। तभी आप वास्तव में स्वतंत्र हैं।
  • देश के विकास के लिए नौजवानों को आगे आना चाहिए।
  • मन की स्‍वतंत्रता ही वास्‍तविक स्‍वतंत्रता है।
  • ज्ञान व्‍‍यक्ति के जीवन का आधार हैं।
  • न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है।
  • लोकतंत्र, सरकार का महज एक रूप नहीं है।
  • धर्म पर आधारित मूल विचार व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए एक वातावरण बनाना है।
  • यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
  • लोग और उनके धर्म, सामाजिक मानकों द्वारा सामाजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिए आवश्यक मान लिया जाएगा, तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
  • कुछ लोग सोचते हैं कि धर्म समाज के लिए आवश्यक नहीं है। मैं यह दृष्टिकोण नहीं रखता। मैं धर्म की नींव को समाज के जीवन और प्रथाओं के लिए आवश्यक मानता हूं।
  • राजनीति में, हिस्सा ना लेने का सबसे बड़ा दंड यह है कि अयोग्य व्यक्ति आप पर शासन करने लगता है।
  • एक सफल क्रांति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि असंतोष हो। जो आवश्यक है वह है न्याय, आवश्यकता, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व पर गहन और गहन विश्वास।
  • यदि हम आधुनिक विकसित भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों को एक होना पड़ेगा।
  • अगर धर्म को क्रियाशील रहना है, तो उसे तर्कसंगत होना चाहिए, क्योंकि विज्ञान का स्वरूप बौद्धिक है।
  • संवैधानिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं हैं। जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते।
  • मैं समझता हूं कि कोई संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है। यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। एक संविधान चाहे जितना बुरा हो, वह अच्छा साबित हो सकता है। यदि उसका पालन करने वाले लोग अच्छे हों।
  • मैं तो जीवन भर कार्य कर चुका हूँ। अब इसके लिए नौजवान आगे आए।
  • सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूंद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है, वहां अपनी पहचान नहीं खोता।
  • इंसान का जीवन स्वतंत्र है। वो सिर्फ समाज के विकास के लिए पैदा नहीं हुआ, बल्कि स्वयं के विकास के लिए भी पैदा हुआ है।
  • राजनीतिक अत्याचार, सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है। समाज को बदनाम करने वाले सुधारक सरकार को नकारने वाले राजनेता की तुलना में अधिक अच्छे व्यक्ति हैं।
  • स्‍वतंत्रता का अर्थ साहस है, और साहस एक पार्टी में व्‍यक्तियों के संयोजन से पैदा होता है।
  • अगला जन्म में हमारा कल्याण होगा। इस खोखले अफवाहों में विश्वास करने के बजाय, हमें इस जन्म में और इसी काल में अपनी प्रगति करनी चाहिए। साथ ही मानव समाज में समानता के अपने मानक स्थापित करने चाहिए।
  • मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्छा है। मेरे बताए हुए रास्ते पर चलें।
  • मैं बहुत मुश्किल से इस कारवां को इस स्थिति तक लाया हूं। यदि मेरे लोग, मेरे सेनापति इस कारवां को आगे नहीं ले जा सकें, तो पीछे भी मत जाने देना।
  • हमें जो स्वतंत्रता मिली है। उसके लिए हम क्या कर रहे हैं? यह स्वतंत्रता हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिली है। जो असमानता, भेदभाव और अन्य चीजों से भरी हुई है। जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करती है।
  • हमें अपने पैरों पर खड़े होना है। अपने अधिकार के लिए लड़ना है, तो अपनी ताकत और बल को पहचानो, क्योंकि शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष से ही मिलती है।
  • मैं रात भर इसलिये जागता हूं, क्योंकि मेरा समाज सो रहा है।
  • विज्ञान और धर्म दो अलग चीजें हैं। कोई चीज विज्ञान का सिद्धांत है या धर्म की शिक्षा है। इसका विचार किया जाना चाहिए।
  • अन्याय से लड़ते हुए आपकी मौत हो जाती है, तो आपकी आने वाली पीढ़ियां उसका बदला जरूर लेंगी, और अगर अन्याय सहते हुए आपकी मौत हो जाती है, तो आपकी आने वाली पीढ़ियां भी गुलाम बनी रहेंगी।
  • हमारे पास यह आज़ादी इसलिए है, ताकि हम उन चीजों को सुधार सकें। जो सामाजिक व्यवस्था, असमानता, भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी हैं। जो हमारे मौलिक अधिकारों की विरोधी हैं।
  • आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता, समानता और भाई -चारे को स्थापित करते हैं, और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इंकार करते हैं।
  • लोग और उनके धर्म, सामाजिक मानकों द्वारा, सामाजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिए आवशयक मान लिया जाएगा, तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
  • धर्म में मुख्य रूप से केवल सिद्धांतों की बात होनी चाहिए। यहां नियमों की बात नहीं हो सकती।
  • धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकती है। लेकिन राजनीति में भक्ति या नायक-पूजा पतन और अंततः तानाशाही का एक निश्चित मार्ग है।
  • मनुष्य एवं उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिए। अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जाएगा, तो किन्हीं और मानकों का कोई मूल्य ही नहीं रह जाएगा।
  • एक सफल क्रांति के‍ लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्त नहीं है, जिसकी आवश्यकता है, वो है न्याय, एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में, गहरी आस्था।
  • इस दुनिया में महान प्रयासों से प्राप्‍त किया गया, को छोडकर और कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है।
  • जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके लिये बेमानी हैं।
  • लोग मुझसे इसलिए नहीं डरते कि मैं विद्वान हूं। इसलिए भी नहीं डरते कि मैं पढ़ा लिखा हूं। मुझे इसलिए भी नहीं डरते कि मैं एक बड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हूं, बल्कि लोग मुझसे इसलिए डरते हैं कि मैं शीलवान हूं, चरित्रवान हूं, और और स्वाभिमानी हूं। मुझे खरीदा नहीं जा सकता। मुझे और मेरे विचारों को बेचा नहीं जा सकता।
  • राजनीतिक अत्याचार, सामाजिक अत्याचार की तुलना में, कुछ भी नहीं हैं, और जो सुधारक, समाज की अवज्ञा करता है। वह सरकार की अवज्ञा करने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है।
  • उदासीनता, लोगों को प्रभावित करने वाली, सबसे खराब किस्म की बीमारी है।
  • यह जरूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और हृदय जितना सभव हो अच्छा करें। इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आएगीं।
  • मन की स्वतंत्रता ही वास्तविक स्वतंत्रता है। एक व्यक्ति जिसका मन स्वतंत्र नहीं है। भले ही वह जंजीरों में न हो। एक गुलाम है, एक स्वतंत्र व्यक्ति नहीं है। जिसका मन मुक्त नहीं है। भले ही वह जेल में न हो, कैदी है और स्वतंत्र व्यक्ति नहीं है। जिसका मन जीवित होते हुए भी मुक्त नहीं है। वह मृत से अधिक नहीं है। मन की स्वतंत्रता किसी के अस्तित्व का प्रमाण है।


Frequently Asked Questions (FAQS):–

  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर का जन्म कब हुआ था?
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर का जन्म 15 अप्रैल 1891 को मऊ, मध्य प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब मध्यप्रदेश, भारत) में हुआ था।
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर माता–पिता नाम क्या था?
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर के माता–पिता रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई थे। अंबेडकर उनकी 14वीं व अंतिम संतान थे।
  • भारतीय संविधान के पितामह किन्हें कहा जाता है?
  • भारतीय संविधान के पितामह भारत रत्न बाबा साहब डॉ.बी.आर.अंबेडकर को जाता है। संविधान के निर्माण में 2 साल 11 माह 18 दिन का समय लगा था।
  • विद्यार्थी दिवस कब मनाया जाता हैं?
  • अम्बेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित शासकीय हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में 7 नवंबर 1900 को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था। इसलिए 7 नवंबर को महाराष्ट्र एवम देश में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आम्बेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था।
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर किस संगठन की स्थापना की? 
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर ने 1955 में 'भारतीय बौद्ध महासभा' यानी 'बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया' की स्थापना की।
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर का महा परिनिर्वाण कब हुआ था?
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर का महापरिनिर्वाण अपनी अंतिम पांडुलिपि भगवान बुद्ध और उनका धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसम्बर 1956 को नींद में दिल्ली में उनके घर मे हो गया। तब उनकी आयु 64 वर्ष एवं 7 महिने थी।
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर का प्रमुख संदेश क्या था?
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर का प्रमुख संदेश उनके अनुयायियों के था – "शिक्षित बनो, संघटित रहो, संघर्ष करो"।
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर को भारत रत्न कब प्रदान किया गया था?
  • डॉ.बी.आर.अंबेडकर को 1990 में, मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार को उनकी दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमण द्वारा अम्बेडकर के 99वें जन्मदिवस, 14 अप्रैल 1990 को स्वीकार किया था। यह पुरस्कार समारोह राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल/अशोक हॉल में आयोजित किया गया था।

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